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ग़ज़ल
हम हैं ऐ यार चढ़ाए हुए पैमाना-ए-इश्क़
तिरे मतवाले हैं मशहूर हैं मस्ताना-ए-इश्क़
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
चलते हैं गुलशन-ए-फ़िरदौस में घर लेते हैं
तय ये मंज़िल जो ख़ुदा चाहे तो कर लेते हैं
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
लुटाते हैं वो बाग़-ए-इश्क़ जाए जिस का जी चाहे
गुल-ए-दाग़-ए-तमन्ना लूट लाए जिस का जी चाहे
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
हवस गुलज़ार की मिस्ल-ए-अनादिल हम भी रखते थे
कभी था शौक़-ए-गुल हम को कभी दिल हम भी रखते थे
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
तलाश-ए-क़ब्र में यूँ घर से हम निकल के चले
कफ़न बग़ल में लिया मुँह पे ख़ाक मल के चले
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
रहा करते हैं यूँ 'उश्शाक़ तेरी याद ओ हसरत में
बसे रहते हैं जैसे फूल अपनी अपनी निकहत में
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
हुआ है तौर-ए-बर्बादी जो बे-दस्तूर पहलू में
दिल-ए-बेताब को रहता है ना-मंज़ूर पहलू में
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
नाहक़ ओ हक़ का उन्हें ख़ौफ़-ओ-ख़तर कुछ भी नहीं
बे-ख़बर हैं वो ज़माने की ख़बर कुछ भी नहीं
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
जश्न था ऐश-ओ-तरब की इंतिहा थी मैं न था
यार के पहलू में ख़ाली मेरी जा थी मैं न था